प्रशंसक

गुरुवार, 30 जून 2016

आज का समाज.............


देखती रहती हूँ गिरते
इन्सान में इन्सान को
सोचती हूँ जा कर कहाँ
रुकेगी ये हैवानियत

शर्म आंखों के किसी 
कोने में भी दिखती नही
गिरते मानवी मूल्य देख 
बढती मेरी हैरानियत

छल बल के दम आदमी
गढता है अस्तित्व को
ऐसे पूज्यनीयोंको देख देख
डर रही शैतानियत

मित्र से तो शत्रु ही 
फिर भले इस बदलते दौर में
मितत्रा की आड में अक्सर,
देखी है बेमानियत

अब तक नही  छोडती है 
पलाश इस आस को
कब तक चलेगा आदमी

छोड कर इन्सानियत

शुक्रवार, 17 जून 2016

प्रियतम मैं सिर्फ तुम्हारी हूँ..............



कुछ फर्ज निभाने है मुझको, कुछ कर्ज चुकाने हैं मुझको
प्रियतम मैं सिर्फ तुम्हारी हूँ, बस कुछ पल थोडा  धीर धरो

कुछ बन्धन मुझे पुकार रहे, खुलनी हैं कुछ मन की गाँठे
हर साँस में बसते हो तुम्ही, बस कुछ पल थोडी पीर सहो

कुछ साये तिमिर के घेरे हैं, मन में भय के कुछ पहरे है
ये कोरा मन तेरा ही है , बस कुछ पल हाथों मे अबीर धरो

कुछ बातें अभी अधूरी हैं, कुछ सुननी कहनी है जग से
ऐ मेरे दिल के अटल नखत, न खुद को नभ की भीड कहो

कुछ दहलीजे रोक रही मुझको, कुछ राहें रस्ता देख रही
विस्वास धरे पलकें मूंदें, बस कुछ पल तुम मेरे साथ बढो

कुछ खोने से मन डरता है, कुछ पाने को मन आतुर है
दिल में अजब बवंडर है, बस कुछ पल थोडी शीत सहो

प्रियतम मैं सिर्फ तुम्हारी हूँ, बस कुछ पल थोडा  धीर धरो

मंगलवार, 7 जून 2016

ढूंढ रहा रह कोई सच................


ढूंढ रहा रह कोई सच, पर छोड ना पाये झूठ के साये
बदलते लोग विघुत गति से, बिन मतलब पास ना आये

झूठी तारीफों के पुल पर, रिश्तों की बिल्डिंग बन जाती
कहते फिरे सच सुनने वाले ही बस हमरे मन को भाये


किसने बनाया सच को कडवा, घोला मीठापन झूठ में
तुम ही बताओ छोड मिठाई, कडवी गोली किसे लुभाये

बदल गया इस कदर जमाना, कहना सच अपराध लगे
सरे बाजार झूठ, सीना ताने अदने सच को रहा डराये

मेडल, पुरस्कार और प्रसंशा, कडपुतलती मक्कारों की
जाने और दिन कैसे कैसे, कैसी प्रगति हम लेकर आये

घर छूटा, छूटा बडों का आदर, स्वतंत्र हुये बेशर्मी को
मार्ड्न बनने की होड कही, पशु से भी ना नीचे ले जाये

अभी वक्त है, वक्त रहते सुधरे, और सुधारे देश दुनिया
अगली पीढी हमें याद कर श्रद्धा से नतमस्तक हो जाये
GreenEarth