प्रशंसक

शनिवार, 12 जनवरी 2013

नारी मन


वो ख्वाब किसी की आंखों का, वो शब्द किसी की बातों का,

जीवन के हर क्षण में वो, वो आधार  सभी की सांसों का

रूप बदल बदल वो आये, हर रूप में सबका साथ निभाये

बिन उसके जीना असम्भव, पर सभी को ये समझ ना आये

दुनिया कभी पूजती उसको, कभी करती है उसका अपमान

नादां लोग ना जा सके, है उसके मान में ईश का मान

वो जीवन की धुरी धरा पर, उसका जीवन ही खतरे में

जब प्रहरी भी बन जाते भक्षक, तो बचे वो कैसे पहरे में

गॄहलक्ष्मी को ग्रहण लगाते, आंखों के तारे राहू बन जाते

कहने को ज्ञानी कहलाते, पर "नारी मन" समझ ना पाते
GreenEarth